जख्म खाकर भी जीवन को बचा लेते हैं
आंसू पीकर ही अपनी प्यास बुझा लेते हैं
झलकता है हर आईने में खुदगर्ज कोई
अपने चेहरे से हम आंखें हटा लेते हैं
मेरी रातों को दीपक की जरूरत ना रही
रोशनी के लिए तेरी याद जला लेते हैं
लोग मरते रहे जन्नत की खुशियों के लिए
और हम हैं कि अपना हर दर्द बढ़ा लेते हैं
आंसू पीकर ही अपनी प्यास बुझा लेते हैं
झलकता है हर आईने में खुदगर्ज कोई
अपने चेहरे से हम आंखें हटा लेते हैं
मेरी रातों को दीपक की जरूरत ना रही
रोशनी के लिए तेरी याद जला लेते हैं
लोग मरते रहे जन्नत की खुशियों के लिए
और हम हैं कि अपना हर दर्द बढ़ा लेते हैं