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सावन भी शर्मसार हो

गम इस कदर बरस पड़े, सावन भी शर्मसार हो
इस हिज्र में दो आंखों से, कुदरत की तकरार हो

हर सिलसिला रूका रहे, हर जलजला बुझा रहे
ठहरी-अंधेरी रात में खामोशी की झनकार हो

कोई रास्ता नहीं मिला खूने-जिगर को तब मुझे
ऐसा लगा कि जख्म भी खंजर से धारदार हो

मेरा दर्द मसला फूल है, मेरी आह टूटा राग है
मेरी मौत का शायद तुम्हें, मुद्दत से इंतजार हो

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