भटकते जा रहे हो, बरसते जा रहे होतपी धरती से रिश्ता निभाते जा रहे हो मुझे कितनी कसक है, तुझे मालूम है सब मगर मुझसे दुख अपना छुपाते जा रहे हो अरे मैं तो इधर हूं, उधर बस तू ही तू है कदम किसकी तरफ तुम बढ़ाते जा रहे हो तेरा दामन ना भींगा मेरे आंसू से अब तक मगर आंचल को मेरे भिंगोते जा रहे हो
बरसते जा रहे हो
Reviewed by Raunak Abbas
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2:41:00 AM
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