2 दिन से तुम आँखों के सामने हो... याद है तुम्हे जब आखिरी बार मिली थी तुम मुझे उस रेलवे प्लेटफार्म पे और मै जा रही थी तुमसे बहुत दूर.. मै जानती थी कि शायद हमेशा के लिए जा रही हूँ, मगर तुम्हे झूठी तसल्ली दे रही थी कि जल्द आउंगी तुम्हे मिलने और तुम्हारी आँखों में उदासी तैर रही थी और तभी ट्रेन की अनाउंसमेंट हुई और कबसे थामे तुम्हारे जज्बात उफन पड़े, तुम रो रही थी, मेरा हाथ पकड़ रही थी और दोहरा रही थी बस इतना कि तुम्हे भी मेरे साथ जाना है और मै??
मै शून्य थी, बस मुस्कुरा रही थी और बोल रही थी तुम्हे रोना बन्द करो, अच्छा नही लगता सबके सामने मगर जानती हो मै भी रोके थी एक समुन्दर सा अपने अंदर मुस्कुराहट के पर्दो के पीछे....
और तुम सोच रही थी खुश हूँ मै, हंस रही हूँ मगर तुमने आँखे नही पढ़ी थी मेरी, खाली आँखे....
मै चली गयी थी हाथ छुड़ा के तुमसे ताकि सम्भल सकू, रोना नही था मुझे, लड़ना था....
जानती हो ये सब आज यहाँ नही लिखती मगर फेसबुक पूछ रहा है wats on ur mind? और 2 दिन से दिमाग में तुम्हारा वो चेहरा ही है, आँसुओ से भरा हुआ, ज़िद्द करता हुआ..
जानती हो तुम बहुत भोली हो...
बहुत मासूम सी हो, और बहुत प्यार करती हो शायद मुझसे मगर सुनो ना, मै नही मिल सकती तुमसे कभी....
तुम खुश रहना और हाँ मुस्कुराती रहना...
#किसी_का_दर्द_मेरे_शब्दों_में_या_शायद..
लेखिका: Madhu Mishra
