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तुम्हारे होने से किस-किस को आस क्या-क्या


तुम्हारे होने से किस-किस को आस क्या-क्या है
तुम्हारी आम सी बातों में ख़ास क्या-क्या है
ये तुम ने हम को सिखाया है अपने होने से
भले वो कोई हो इन्सां के पास क्या-क्या है
एक पहाड़े सा मेरी उँगलियों पे ठहरा है
तेरी चुप्पी का सबब क्या है? इसे हल कर दे
ये फ़क़त लफ़्ज हैं तो रोक दे रस्ता इन का
और अगर सच है तो फिर बात मुकम्मल कर दे
मेरी आँखों से ये छाला नहीं जाता मौला
इनसे तो ख़्वाब भी पाला नहीं जाता मौला
बख़्श दे अब तो रिहाई मेरे अरमानों को
मुझ से ये दर्द संभाला नहीं जाता मौला
खेल एहसास के, इनाम में सिक्के औ हवस
आप ही खेलिए हम से नहीं खेले जाते
मुंबई तुझसे मुहब्बत तो है मुझको लेकिन
इस मुहब्बत के तक़ाज़े नहीं झेले जाते

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