अगर पत्थर के सीने में भी कोई दर्दे-दिल होता
किसी शीशे को ये तोड़े, कभी मुमकिन नहीं होता
मसीहा ने जमाने को सिखाया राह पे चलना
मगर दुनिया में कोई सच्चा मुसाफिर नहीं होता
जिस्म में दर्द ही रूह का अहसास करता है
हर किसी के सीने में ये खंजर नहीं होता
दाग ये धुल न जाए, आग ये बुझ ना जाए
इश्क में इनके सिवा और कुछ हासिल नहीं होता