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पत्थरों पे सर पटकने के सिवा क्या मिलता

पत्थरों पे सर पटकने के सिवा क्या मिलता
एक समंदर को बिलखने से भला क्या मिलता

दश्त में चिड़िया भटकती रही तन्हा-तन्हा
इस घनी रात में उसे नीड़ भला क्या मिलता

गूंजती है तेरी आवाज ही जिस्मो-जां में
मेरी खामोशी में सिवा तेरे भला क्या मिलता

जहां मातम ही मनाता हो बंदगी में कोई
ऐसे मंदिर में कोई दीप भला क्या मिलता

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