किस क़दर सर्द है यह रात-अंधेरे ने कहा
मेरे दुशमन तो हज़ारों हैं - कोई तो बोले
चांद की क़ाश भी तहलील हुई शाम के साथ
और सितारे तो संभलने भी न पाए थे अभी
कि घटा आई, उमड़ते हुए गेसू खोले
वह जो आई थी तो टूटके बरसी होती
मगर एक बूंद भी टपकी न मेरे दामन पर
सिर्फ़ यख़-बस्ता हवाओं के नुकीले झोंके
मेरे सीने में उतरते रहे, खंजर बनकर
खोई आवाज नहीं- कोई भी आवाज नहीं
चार जानिब से सिमटता हुआ सन्नाटा है
मैंनें किस कर्ब से इस शब का सफ़र काटा है
दुशमनों! तुमको मेरे जब्रे-मुसलसल की कसम
मेरे दिल पर कोई घाव ही लगाकर देखो
वह अदावत ही सही, तुमसे मगर रब्त तो है
मेरे सीने पे अलाव ही लगाकर देखो
मेरे दुशमन तो हज़ारों हैं - कोई तो बोले
चांद की क़ाश भी तहलील हुई शाम के साथ
और सितारे तो संभलने भी न पाए थे अभी
कि घटा आई, उमड़ते हुए गेसू खोले
वह जो आई थी तो टूटके बरसी होती
मगर एक बूंद भी टपकी न मेरे दामन पर
सिर्फ़ यख़-बस्ता हवाओं के नुकीले झोंके
मेरे सीने में उतरते रहे, खंजर बनकर
खोई आवाज नहीं- कोई भी आवाज नहीं
चार जानिब से सिमटता हुआ सन्नाटा है
मैंनें किस कर्ब से इस शब का सफ़र काटा है
दुशमनों! तुमको मेरे जब्रे-मुसलसल की कसम
मेरे दिल पर कोई घाव ही लगाकर देखो
वह अदावत ही सही, तुमसे मगर रब्त तो है
मेरे सीने पे अलाव ही लगाकर देखो