वक़्त है ऐसा परिंदा लौट कर आता नहीं
जो गुज़र लाता है लम्हा खुद को दोहराता नहीं
झुक के हम मिलते हैं बेशक गिर के हम मिलते नहीं
जी हमारा दिल अना को ठेस पहुंचाता नहीं
साफ-सुथरी ज़िन्दगी में बाल न पड़ता अगर
आईना दिल का तेरी आँखों से टकराता नहीं
दोस्तों की महफ़िलें हों चाहे हों तन्हाईयाँ
आपको देखा है जब से कुछ हमें भाता नहीं
'क़म्बरी' सच्चाई पर चलना तो मुश्किल है मगर
जो भटक जाता है राहें मंजिलें पाता नहीं !
जो गुज़र लाता है लम्हा खुद को दोहराता नहीं
झुक के हम मिलते हैं बेशक गिर के हम मिलते नहीं
जी हमारा दिल अना को ठेस पहुंचाता नहीं
साफ-सुथरी ज़िन्दगी में बाल न पड़ता अगर
आईना दिल का तेरी आँखों से टकराता नहीं
दोस्तों की महफ़िलें हों चाहे हों तन्हाईयाँ
आपको देखा है जब से कुछ हमें भाता नहीं
'क़म्बरी' सच्चाई पर चलना तो मुश्किल है मगर
जो भटक जाता है राहें मंजिलें पाता नहीं !