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वो नज़ारे जो कभी शौक़-ए-तमन्ना



वो नज़ारे जो कभी शौक़-ए-तमन्ना थे मुझे
कर दिए एक नज़र मे ही पराये उसने
रंग-ए-दुनिया भी बस अब स्याह और सफ़ेद लगे
मेरी दुनिया से यूँ कुछ रंग चुराए उस ने

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