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ज़ालिम‬ कहाँ तक है



मत पूछ मेरे ‪#‎सब्र‬ की ‪#‎इन्तेहा‬ कहाँ तक है;
तु ‪#‎सितम‬ कर ले, तेरी ‪#‎ताक़त‬ जहाँ तक है;
व़फा की ‪#‎उम्मीद‬ जिन्हें होगी, उन्हें होगी;
हमें तो देखना है, तू ‪#‎ज़ालिम‬ कहाँ तक है!

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