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कब तक ऑंखें ही नाम करके हम शांत हो

कब तक ऑंखें ही नाम  करके हम शांत हो क्या  
हमे  जीने   का   हक   नहीं   है   यहाँ क्यूँ   नहीं   सुन   रहा   
कोई   आवाज   को बोलने   का   हक   हमे   क्या   नहीं है यहाँ
कल   पढ़ा   था  हर  कोई  यहाँ  आजाद  है था  
जहाँ  ये  लिखा  वो   संविधान  है कहाँ बोलने की सजा  अब  
तो  मौत  मिल  रही न्यायदाता    धरा    से    गए    अब   कहाँ
दर्द   माँ   के    शहीदों   का   वो  जाने 
क्या जिसने  गीदड    ही   पैदा   किये   है  
 यहाँ लाल  अपना   जो   खोते   तो   वो  जानते  
लाल   खोके     माँ   कैसे   है   ज़िंदा   यहाँ

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