इन हवाओं से बारहा ठोकर खाकर
फूल गिरते रहे पेड़ों से जमीं पे आकर
अपनी किस्मत में कभी चैन का नाम नहीं
नींद आती है न कभी वक्त पे जाकर
बेवफा उनको क्यूं कहूं जो साथ न दे
हमने तो जीना सीखा है बस धोखे खाकर
वो फरिश्ता है जिसे मौत का गम न हो
जो चढ़ता हो सूली पे खुद से जाकर
फूल गिरते रहे पेड़ों से जमीं पे आकर
अपनी किस्मत में कभी चैन का नाम नहीं
नींद आती है न कभी वक्त पे जाकर
बेवफा उनको क्यूं कहूं जो साथ न दे
हमने तो जीना सीखा है बस धोखे खाकर
वो फरिश्ता है जिसे मौत का गम न हो
जो चढ़ता हो सूली पे खुद से जाकर