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इन हवाओं से बारहा ठोकर खाकर

इन हवाओं से बारहा ठोकर खाकर
फूल गिरते रहे पेड़ों से जमीं पे आकर

अपनी किस्मत में कभी चैन का नाम नहीं
नींद आती है न कभी वक्त पे जाकर

बेवफा उनको क्यूं कहूं जो साथ न दे
हमने तो जीना सीखा है बस धोखे खाकर

वो फरिश्ता है जिसे मौत का गम न हो
जो चढ़ता हो सूली पे खुद से जाकर

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